Wednesday 23 April 2014

 

  मिस तो हूँ पर मिस नहीं करती : लिली  थॉमस



                      “’देश के भविष्य का फैसला उनके हाथों में हो जो आपराधिक पृष्ठभूमि से आते हैं या फिर जो भ्रष्ट हैं। इसीलिये मैंने अदालत में ये लड़ाई लड़ी। अगर हम वकील होकर इसके लिए नहीं लड़ेंगे तो फिर कौन करेगा। “
                         ये शब्द हैं उस महिला के जो न सिर्फ़ एक वकील हैं, बल्कि न्याय की सफल प्रहरी भी हैं। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता लिली थॉमस मूलतः केरल की रहने वाली हैं। लिली थॉमस ने सन 1954 में मद्रास विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. डिग्री हासिल की तत्पश्चात 1960 में उन्होंने पहली महिला एल.एल.एम. होने का भी गौरव प्राप्त किया। उन्होंने विवाह नहीं किया जिसका उन्हें कोई मलाल नहीं। जस्टिस देसाई द्वारा कोर्ट रूम में पूछे जाने पर कि “ मैडम काउंसिल, आप मिस हैं या मिसेस?” थॉमस चतुराई से उत्तर देती हैं,” निःसंदेह मैं मिस ही हूँ, लेकिन मैं ज्यादा मिस नहीं करती।” अमूमन महिला वकील होना एक चुनौतीपूर्ण काम माना जाता है और इसी मिथक को धता बताने का नाम है लिली थॉमस।
                   85 वर्षीय लिली थॉमस देशहित में युवा ऊर्जा के साथ वकालत करती हैं जिनका उच्चतम न्यायालय के शीर्ष अधिवक्ताओं में शुमार है। उनका मानना है कि महिला वकील की निर्भीक एवं बेबाक छवि उसका सबसे कारगर हथियार होता है।
                         उनकी इसी निर्भीकता का परिणाम हाल ही में एक फैसले के रूप में सामने आया, जिसमे देश की शीर्ष अदालत ने “जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) “ को असंवैधानिक घोषित किया। धारा 8(4) ऐसा लूपहोल था जिससे अपराधी देश की संसद और प्रदेशों की विधान सभाओ में घुसते थे।
                       न्यायमूर्ति एके पटनायक और न्यायमूर्ति सुधांशु ज्योति मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने यह फैसला अधिवक्ता लिली थॉमस और गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी की जनहित याचिका पर 10 जुलाई 2013 को सुनाया। यह फैसला 10 जुलाई 2013 से ही लागू हो गया है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, “ संसद ने अपने अधिकार की हदें पार करके इस तरह का प्रावधान निर्मित किया जो की संविधान की मूल भावना के प्रतिकूल है। लिली थॉमस इसे एक बड़ी जीत मानती हैं। निश्चय ही इसे भारत की एक नारी का ऐतिहासिक सफल प्रयास कहना कतई गलत नहीं है। देश राजनीतिक संक्रमण की स्थिति से गुजर रहा है, ऐसे में लिली थॉमस ने मील का पत्थर गढ़ दिया। उनकी तरफ से केस की पैरवी फाली एस.नरीमन ने की जो की थॉमस के अच्छे मित्रों में से एक हैं। स्वयं अनेकों मामलों की पैरवी करते हुए लिली थॉमस ने मानवाधिकार के लिए कई मोर्चे सम्हाले जिनमे से अधिकाँश में उन्हें सफलता ही हासिल हुई।
                             वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति पर थॉमस बेहद स्पष्ट मत रखते हुए कहती हैं, “ इस देश को भ्रष्ट या गुंडे चलाएँ, ये नहीं हो सकता। इसीलिए तो मुझे जनप्रतिनिधित्व कानून के उस अंश पर आपत्ति थी जिसमे प्रावधान किया गया है कि दोषी करार दिए जाने के बाद भी जनप्रतिनिधि अपनी कुर्सी पर बने रह सकते हैं अगर वो उस अदालत के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देते हैं।”
                              लिली थॉमस सीरियन ईसाई होते हुए भी हिन्दू संस्कृति की बड़ी पैरोकार हैं। 2012 में भारत के प्रधान न्यायाधीश अल्तमश कबीर के पूछने पर कि, “लिली, आप क्या चाहती हैं?” उन्होंने सादगी से उत्तर दिया,”मैं देश में सात्विक संसद चाहती हूँ!”
                             अदालत को संविधान का अभिभावक एवं आम लोगों को उसका लाभार्थी मानने वाली लिली थॉमस कहती हैं, “हम अच्छा प्रशासन तब तक नहीं दे सकते जब तक अच्छे लोग न हों सरकार में! अगर कुछ अच्छे लोग चुनकर आयेंगे तो लोगों का जीवन भी अच्छा होगा।”
                              सर्वोच्च न्यायालय के अमुक फैसले के पूर्व हर गली-नुक्कड़ से आवाज़ सुनाई देती थी कि संसद में हत्यारे, लुटेरे, बलात्कारी जमे हुए हैं ऐसे में देश का विकास भला कैसे संभव है। फैसला आने के बाद भी इसकी पूर्ववत आलोचना जारी है। इसे हम समाज का स्वभाव मान सकते हैं। लिली थॉमस ने समाज की इसी मनोस्थिति को भांप लिया और 2005 में पहुँच गईं लोकहित के सबसे बड़े संरक्षक के दरवाजे पर। एक महिला के द्वारा इतना बड़ा कदम उठाया जाना साहस की मिसाल है, यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने चेहरे भी लिली थॉमस को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। उनका जीवन लोक-अधिकारों के लिए समर्पित रहा है।
                             आज उम्र के पचासीवें पड़ाव पर भी थॉमस क़ानून को बारीकी से परखती हैं। उन्होंने वकालत को महज़ एक पेशा नहीं बल्कि न्याय की स्थापना का माध्यम माना है। व्यक्तिगत जीवन में लिली थॉमस बेहद सुलझी हुई शख्सियत हैं, जिनमे सहजता साफ़ झलकती है। जस्टिस फज़ल अली ने एक दफ़े लिली से शादी न करने का कारण पूछा तो बेहद शालीनता एवं सहजता से उन्होंने उत्तर दिया, “ जितने भी पुरुष मुझे पसंद आये, वो या तो संत या न्यायाधीश बन गए। मुझे कोई एक ऐसा व्यक्ति नहीं दिखा जिसमे जेम्स बांड, अब्राहम लिंकन या विंस्टन चर्चिल जैसी शख्सियत हो।” 
                        आसमान में सुराख करने का हौसला रखने और तबीयत से पत्थर उछालने की कवायद को अंजाम देने वाली महिला वकील लिली थॉमस समस्त नारी जगत के लिए मिसाल हैं।

http://meribitiya.com/success-song/1299-lili-thomson-keral-llm-supreme-court-lady-anand-rup-dwiwedi.html

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